कुमैल रिज़वी, अमेठी: जनपद के मुसाफिरखाना क्षेत्र के भनौली में रसूल-ए-खुदा की बेटी जनाब-ए फातमा ज़हरा के शहादत दिवस तीन जमादिउस्सानी पर अय्याम-ए-फातमी का एकदिवसीय मजलिस कार्यक्रम संपन्न हुआ। शनिवार को मुसाफिरखाना तहसील के पूरे बस्ती गाँव में एजाज़ हुसैन द्वारा आयोजित मजलिस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मौलाना मेहँदी हसन जलालपुरी ने कहा कि जनाब-ए-फातमा जहरा की महिमा और महत्व अल्लाह रब्बुल इज्जत व सरवर-ए-कायनात के अतिरिक्त कोई नहीं समझ सकता। मजहब-ए-इस्लाम में उनका किरदार नुमाया है। रसूल अल्लाह ने जिन बीबी फातमा को अपने जिगर का टुकड़ा बताया था, उन्हीं के दरवाजे पर कथित मुसलमान आग व लकड़ियां लेकर जमा हो गए थे, जो इस्लामी इतिहास का सर्वाधिक दु:खद पहलू है। कार्यक्रम में मौलाना हैदर अब्बास, नदीम रज़ा, डॉ. मोहम्मद इस्तियाक अंसारी, आबिद रिज़वी ने भी खिताब किया। संचालन तकदीरुल हसन साहब ने किया।
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आपको बता दें कि अपनी बेटी हजरत फातमा जहरा स. को रसूल-ए-अकरम बेहद मानते थे। जब फातमा स. आती थीं तो रसूल खड़े होकर उनका इस्तकबाल करते थे। रसूल ने हदीस फरमाई- फातमा बिजअतो मिन्नी। फातमा मेरा टुकड़ा हैं। जिसने फातमा को नाराज किया उसने मुझे नाराज किया। अपने बाबा की शहादत के बाद 13 जमादिउल अव्वल या तीन जमादिउस्सानी सन 11 हिजरी को जनाब फातमा जहरा स. की भी शहादत हो गई। उनका जनाजा हजरत अली अ. ने रात की तारीखी में उठाया। इसमें खानदान के चंद हजरात ही मौजूद थे।
अय्याम-ए-अजा की अंतिम मजलिस में भारी मजमे के बीच पढ़ते हुए मौलाना नदीम रज़ा ने कहा कि बाद-ए-रसूल, उनकी इकलौती बेटी के घर पर नहीं, बल्कि दीन-ए-इस्लाम पर हमला था, जिसने सत्य-असत्य के मध्य हमेशा के लिए अमिट रेखा खींच दिया। रसूल ने हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से फरमाया था, “जब मैं अपनी बेटी सय्यदा को देखता हूं तो मुझे वे मज़ालिम याद आ जाते हैं, जो मेरे बाद उन पर ढाए जाएंगे।”
इस अवसर पर मोहम्मद नाजिम, मोहम्मद इमरान, अली कौसर, हसन मोहम्मद, डॉ. असद रिज़वी, हसनैन हैदर, अब्बास रज़ा, मूसी रज़ा, मोहम्मद मोहसिन सहित गाँव व दूर दराज़ से आए मोमनीन मौजूद रहे।