लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थिति मजबूत करने के प्रयास तेज हो गए हैं। चुनावी माहौल को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सभी सहयोगी संगठनों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि कोई ऐसा काम न किया जाए जिससे सरकार असहज स्थिति में दिखे।
आरएसएस की रणनीति और चुनावी तैयारी
आरएसएस ने पिछले तीन दिनों तक यूपी की राजनीतिक स्थिति पर मंथन किया। इस दौरान यह स्पष्ट हुआ कि संगठन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने सरकार की स्थिति को अनुकूल बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभाए। संघ ने कहा है कि सड़क से लेकर मीडिया तक किसी भी ऐसे मुद्दे को सार्वजनिक न किया जाए जिससे सरकार असामान्य या कमजोर नजर आए।
बाराबंकी में एबीवीपी से जुड़े पिछले प्रकरणों का हवाला देते हुए संघ ने संगठनों को चेतावनी दी कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। हर मुद्दे को उचित मंच पर उठाने और वरिष्ठ पदाधिकारियों के समन्वय से निपटाने की सलाह दी गई है।
लखनऊ में महत्वपूर्ण बैठक और समन्वय पर जोर
जोधपुर में राष्ट्रीय समन्वय बैठक के बाद लखनऊ में पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र के संघ परिवार और सहयोगी संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक हुई। बैठक में भाजपा के साथ समन्वय का कार्य देख रहे अरुण कुमार और सह-सरकार्यवाह अतुल लिमये मौजूद थे।
बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन सबसे अधिक जोर सरकार के साथ सहयोग और समन्वय पर दिया गया। आरएसएस ने सहयोगी संगठनों को निर्देश दिया कि सभी मामलों में गंभीरता बरतें और विपक्ष को राजनीतिक अवसर न मिलने दें।
पुरानी व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ बनाना
सरकार और संगठन के बीच समन्वय बनाए रखने के लिए पुरानी व्यवस्था को और अधिक धारदार बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री से जुड़े मामलों में प्रदेश महामंत्री धर्मपाल सिंह मुख्य समन्वयक होंगे। वहीं, मंत्री स्तर पर अमरपाल मौर्य और पार्टी संगठन से जुड़े मामलों का समन्वय कामेश्वर सिंह देख रहे हैं।
आरएसएस इस साल अपनी शताब्दी वर्ष मना रहा है। संघ की कोशिश है कि संगठन की पहुँच हर गांव तक पहुंचे। इसके लिए राजनीतिक माहौल का अनुकूल होना जरूरी है। लोकसभा चुनाव के अनुभव ने संघ और भाजपा दोनों को सबक दिया है। इस स्थिति में आरएसएस हिंदुत्व के मुद्दों को प्रभावी बनाने और भाजपा के साथ सहयोग बढ़ाने में जुटा हुआ है।