कड़े संघर्ष और कड़ी मेहनत के बाद भी यूपी में समाजवादी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है। हालांकि, अखिलेश यादव के नेतृत्व में पिछले चुनावों के मुकाबले सपा ने बेहतर प्रदर्शन किया। पार्टी को करीब 32 प्रतिशत मत भी मिले लेकिन सपा जीत के जादुई आंकड़े को नहीं छू पायी। अखिलेश यादव के नए दोस्त जिन्हें सपा ने भाजपा से अपनी पार्टी में शामिल किया था और वे भी जिन्हें उन्होंने अपना सहयोगी बनाया था वे भी पार्टी को जीत न दिला सके। इनमें स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता भी शामिल हैं जो खुद अपनी सीट भी नहीं बचा सके।
गठबंधन पर भारी हिन्दुत्व
सपा की सहयोगी आरएलडी ने 2017 के मुकाबले भले ही पश्चिम में बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन कुछ खास हासिल नहीं कर सकी। किसान आंदोलन का उसे कोई लाभ नहीं मिला। पार्टी करीब 9 सीटों पर जीतती नजर आ रही है। इसी तरह सपा के नए सहयोगी सुभासपा, महान दल और अपना दल कमेरावादी भी कुछ खास नहीं कर सके। उल्टे सुभासपा को पिछले साल के मुकाबले एक सीट का नुकसान होता दिख रहा है। मुलायम सिंह के हाशिये पर जाने के बाद से सपा ने अकेले ही मोर्चा संभाला। इसके अलावा बीजेपी के हिन्दुत्व कार्ड के आगे अखिलेश का पिछड़ा वर्ग कार्ड नहीं चल सका। एमवाई यानी मुस्लिम यादव गठजोड़ के मुकाबले भाजपा का एमवाई यानी मोदी योगी की जोड़ी ज्यादा कारगर रही।
टीम ने नहीं दी सही रिपोर्ट
समाजवादी पार्टी की विफलता का ठींकरा उनकी टीम पर फूटेगा अखिलेश यादव जिनकी प्रतिक्रिया और कार्रवाई पर भरोसा कर रहे थे। गलत ग्राउंड रिपोर्ट देने के लिए उदयवीर सिंह, राजेंद्र चौधरी, अभिषेक मिश्रा, नरेश उत्तम पटेल और ऐसे अन्य नेताओं की आलोचना होगी। इनकी रिपोर्ट पर ही टिकट बांटे गए थे।
टिकट वितरण में गलतियां
अखिलेश की विफलता का एक प्रमुख कारण सपा में गलत टिकट वितरण रहा। इसके कारण कई सीटों पर हार हुई। जिन्हें सपा आसानी से जीत सकती थी। कुछ सीटों पर नए उम्मीदवार खड़े किए। ऐसे में पुराने नेताओं ने या तो पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ काम किया या अन्य पार्टियों से चुनाव लड़ा, जिससे हार हुई।
मीडिया नैरेटिव स्थापित नहीं हो पाया
सपा में प्रभावी मीडिया कवरेज के लिए आशीष यादव की टीम जिम्मेदार थी। राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर साक्षात्कार से लेकर प्रचार में भारी भीड़ जमा होने के बाद उसे भुनाने की जिम्मेदारी इसी टीम पर थी। बावजूद इसके सपा के पक्ष में मीडिया नैरेटिव को स्थापित नहीं हो सका। मीडिया की अच्छी रणनीति होती तो परिणाम कुछ और होते।
गैर राजनीतिक टीम पर अधिक भरोसा
अखिलेश ने अपनी गैर-राजनीतिक टीम पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया। टिकट वितरण में पार्टी नेताओं की अनदेखी की। वह मुलायम सिंह यादव की तरह जनेश्वर मिश्रा, रेवती रमण सिंह, माता प्रसाद पांडे, बेनी प्रसाद वर्मा और मोहन सिंह जैसे सपा नेताओं की तरह दूसरे पायदान के नेताओं की टीम स्थापित नहीं कर सके।
अखिलेश नए प्रयोगों में असफल
अखिलेश ने 2017, 2019 और 2022 के जिन तीन चुनावों में पार्टी में नया प्रयोग किया उनमें वे असफल रहे। 2017 में कांग्रेस के साथ गठबंधन पर सिर्फ 47 सीटें मिलीं। 2019 में बसपा के साथ गठबंधन विफल रहा। 2022 में भाजपा के बागियों को शामिल करने और नए नेताओं को टिकट देने से कोई लाभ नहीं मिला।