कहते हैं कि 11 साल की उम्र से ही मिर्ज़ा ग़ालिब ने शायरी शुरू कर दी । अपनी शायरी में वो अपना नाम या मिर्ज़ा लिखते थे या ग़ालिब। लिहाजा, बाद में वो मिर्ज़ा ग़ालिब के नाम से ही मशहूर हो गए।
गालिब का विवाह 13 साल की कम उम्र में उमराओ बेगम से हुआ. हालांकि मिर्जा गालिब की कोई संतान नहीं थी. मिर्ज़ा ग़ालिब को आम बहुत पसंद थे। उनके दोस्त भी उन्हें तोहफे में फल दिया करते थे। मिर्ज़ा ग़ालिब का आम से जुड़ा हुआ एक मशहूर किस्सा भी फेमस है। एक बार ग़ालिब आम खा रहे थे। आम खाकर उन्होंने छिलका फेंक दिया।तभी एक सज्जन ऊधर से अपने गधे के साथ जा रहे थे । उनके गधे ने जमीन पर फेंके हुए छिलके को सूंघकर छोड़ दिया। सज्जन ने यह देखकर गालिब का मजाक उड़ाना चाहा और कहा देखो ‘गधे भी आम नहीं खाते’ लेकिन गालिब की हाजिरजवाबी सज्जन पर भारी पड़ गई। गालिब ने तंज कसते हुए कहा, ‘गधे ही आम नहीं खाते’। आपको बता दु मिर्ज़ा ग़ालिब की बनारस-यात्रा मशहूर है। उन्होंने बनारस में जो कुछ भी देखा था उसे अपने एक मसनवी ‘चिराग-ए-दैर’ में लिखा,”जब मैं बनारस में दाखिल हुआ, उस दिन पूरब की तरफ़ से जान बख़्शने वाली, जन्नत की जैसी हवा चली, जिसने मेरे बदन को तवानाई अता की और दिल में एक रूह फूंक दी। उस हवा के करिश्माई असर ने मेरे जिस्म को फ़तह के झण्डे की तरह बुलंद कर दिया। ठण्डी हवा की लहरों ने मेरे बदन की कमजोरी दूर कर दी।” आपको बताते दु मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर उनके बहुत बड़े कद्रदान हुए। खुद जफर भी शायरी किया करते थे। इसलिए दोनों की खूब बनती। लेकिन ये वो दौर था जब देश में मुगलिया सल्तनत अपने बुरे दौर से गुजर रही थी। एक वक्त ऐसा भी आया जब अंग्रेजी सत्ता के आगे मुगल सेना हार गई और इसके साथ ही शायरी का वो दौर भी काफी हद तक थम गया। बहरहाल, इस ग़ालिब ने जो लिखा वो आज तक इतिहास के पन्नों में दर्ज है।वैसे तो मिर्जा गालिब फारसी में भी शायरी करते थे लेकिन वे मुख्य तौर पर उर्दू ज़बान के शायर के तौर पर मशहूर हैं. ग़ालिब के यौम-ए-पैदाइश मुबारक़ के मौक़े पर यहां हम आपको उनके कुछ बेहद मशहूर शेर दे रहे हैं। एक नजर डालिए और लुत्फ लीजिए इस शायरी का कितने आसान तरीके से वो अपने जज्बात को कागज पर उतार देते थे।