बापु समय के बहुत ही पाबंद थे वह प्रत्येक काम को निश्चित समय पे शुरू कर देते थे.और जितना समय जिस काम के लिए निश्चित करते उतना ही समय उसमे लगाते एक बार एक जर्मन शख्स गाँधी जी से दो मिनट के लिए मिलना चाहता था. उनके के सेक्रेटरी महादेव देसाई ने किसी तरह गाँधी जी को दो मिनट का समय देने के लिए राज़ी किया जर्मन शख्स जब गाँधी जी से मिले, एक मिनट तो शिष्ठाचार यानि की शुक्रिया और नमस्ते आदाब करने में निकल गया. और दुसरा मिनट बात का किरदार को बांधने में 2 मिनट बाद बापू ने जर्मन को घड़ी देखाई और उठ कर खड़े हो गए. वह मायुस यानि की निराशा हो कर बाहर चला गया. वही एक इंसान की घड़ी 5 मिनट तेज़ चल रही थी. इसपर उन्होंने उस इंसान को सलाह दिया जो घड़ी सही समय न बताये उसे रखने से कोई फ़ायदा नही है.
महात्मा गाँधी पैसे ज्यादा खर्च करने के मोखालिफ यानि की विरोधी थे.अपने ऊपर नाममात्र का खर्च करने के वजह वे घुटनों तक की धोती पहनते और एक खद्दर दुपट्टा कंधे पे डाले रहते थे. साथ ही,रुमाल की जगह पे एक खद्दर का टुकड़ा रखते थे. साथ ही साफ सफाई का ख्याल बहुत रखते थे.
महात्मा गांधी हर चीज़ को उसके स्थान पे रखते थे. ताकि वह अँधेरे में वह हाथ बढाएं तो वह चीज़ मिल जाए. महात्मा गाँधी बच्चों से बहुत प्यार करते थे. उनके साथ उन्ही की तरह घुल मिल जाते थे.
बापु कभी अपने आपको बुज़ुर्ग नही मानते थे वह हर दिन कुछ न कुछ नया सीखना चाहते थे.
वे जो कहते, पहले खुद पर तजुर्बा यानि की प्रयोग करते.
एक बार जब उन्हें इंग्लैंड के राजा के साथ चाय पीने का न्योता मिला, तो उन्होंने अपने पहनावे में कोई तबदीली नहीं की. वहां के प्रेस वालों ने जब उनसे पूछा कि धोती-लंगोटी पहनकर राजा के महल में कैसे गए? ऐसा करना तो राजा के अपमान के बराबर है। गांधी जी ने कहा कि अगर उनसे मिलने के लिए मैं अपना वेश छोड़ देता और विदेशी पोशाक पहन लेता, तो वह बेईमानी होती। इससे उनका ज्यादा अपमान होता.
महात्मा गांधी लंदन में कानून की पढ़ाई करने और बैरिस्टर के लिये गए थे. उन्होंने लंदन में पढ़ाई कर बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की थी.