आजमगढ़ जिले के जनप्रतिनिधि हों या आला अधिकारी इनमें से किसी के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते। इतना ही नहीं अधिकतर सरकारी शिक्षकों वडॉक्टरों के बच्चे भी निजीस्कूलों में शिक्षा ले रहे हैं। ऐसे में इस स्थिति में कैसे सरकारी स्कूलों की दशा सुधरेगी। यह एक यक्ष प्रश्न है। जिनके कंधों पर बेहतर शिक्षणव्यवस्था देने की जिम्मेदारी है। उनके बच्चे ही स्कूलों में नहीं पढ़ते।
जिले के स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है। स्कूल जर्जर हालत में है, छात्रों को बैठने के लिए बेंच नहीं हैं। स्वच्छ पानी पीने की व्यवस्था स्कूलों मेंनदारद है। टायलेट की स्थिति भी ठीक नहीं है। एक ही कमरे में बड़ी संख्या में छात्र बैठते हैं। शिक्षकों की कमी है। इस वजह से सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षक भीअपने बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते हैं।
जिले के स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है। स्कूल जर्जर हालत में है, छात्रों को बैठने के लिए बेंच नहीं हैं। स्वच्छ पानी पीने की व्यवस्था स्कूलों मेंनदारद है। टायलेट की स्थिति भी ठीक नहीं है। एक ही कमरे में बड़ी संख्या में छात्र बैठते हैं। शिक्षकों की कमी है। इस वजह से सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षक भीअपने बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते हैं।
जनप्रतिनिधियों का मानना हैं हम सभी जनप्रतिनिधियों को चहिये कि अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही भेजे साथ ही जिले के सभी बड़े अधिकारी अपनेबच्चों को सरकारी स्कूल में भेजे जिससे जनता में एक मैसेज जायेगा और लोग जागरूक होंगे और तभी स्कूल की दिशा और दशा परिवर्तित होगा। रिपोर्ट:- राकेश वर्मा